जादुई तोते की ये कहानी… आपको भी कर देगी हैरान…पढ़े पूरी खबर

सुदूर दक्षिण में एक अद्भुत दुर्ग था। नाम था छत्तीसगढ़। उसके बारे में कहा जाता था कि उस दुर्ग में छत्तीस छोटे-छोटे दुर्ग थे। इतने सारे दुर्गों के फाटक केवल छह ही थे। उनमें भी एक विशेषता थी। यदि एक फाटक पर खड़े होकर कुछ कहा जाता तो उस बात को दीवारें पकड़ लेती थीं। उसे छहों फाटकों पर सुना जा सकता था। उस दुर्ग में राजा सूर्य कुमार रहते थे। दुर्ग की रक्षा के लिए यूं तो हजारों सैनिक तैनात थे किंतु रक्षा का असली भार एक तोते पर था। वह तोता राजा का मित्र और सलाहकार भी था। मनुष्य की तरह उसे कई भाषाएं आती थीं। वह छत्तीसगढ़ में बने एक पिंजरानुमा महल में अकेला ही रहता था। तोते को आगे घटने वाली सारी बातों का पता चल जाता था और वह तुरन्त राजा को अच्छी-बुरी घटनाओं की सूचना दे देता। कई बार तो तोते ने राजा को सेनापति, मंत्री और दूसरे शत्रुओं के षड्यंत्र से बचाया। राजा तोते के अलावा न किसी से सलाह लेता, न किसी की बात मानता। परिणाम यह हुआ कि राजा के मंत्री और सेनापति तोते के दुश्मन बन गए। महारानी को तो तोता फूटी आंखों नहीं भाता था। उसी के जाल में फंस कर राजा राजमहल में बहुत कम आते। आते तो चिंताओं से घिरे हुए। सभी तोते से परेशान थे मगर कुछ कर नहीं पाते थे। जो भी षड्यंत्र रचते, तोते को उसका पता चल जाता। फिर षड्यंत्र में शामिल होने वालों को राजा का कोपभाजन बनना पड़ता। तोता जिस महल में रहता था, इसमें जाने का रास्ता भी राजा के अलावा कोई नहीं जानता था। छत्तीसवें दुर्ग में कहीं यह महल था। छत्तीस दुर्गों के केवल छह रास्ते और उन पर सैनिकों का कड़ा पहरा। फिर भी जरा-सी बात तोते के कानों में पहुंच जाती। ऐसे में तोते को वश में करना या उसे मौत के घाट उतार देना क्या सरल था। एक दिन महारानी ने मंत्री को बुलवाया। बड़ी सावधानी बरती। उन्हें डर था, कहीं राजा को पता न चल जाए इसीलिए मंत्री महल के गुप्त रास्ते से आया था। महारानी ने कहा, ‘‘मंत्री जी, इतने सारे गुप्तचर हमारे पास हैं। तोते का पता नहीं लगा सकते?’’